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कविता

उद्धव-शतक

जगन्नाथदास ‘रत्नाकर’

अनुक्रम

अनुक्रम 1. मंगलाचरण     आगे

जासौं जाति विषय-विषाद की विवाई बेगि

चोप-चिकनाई चित चारु गहिबौ करै।

कहै रतनाकर कवित्त-बर-व्यंजन मैं

जासौ स्वाद सौगुनौ रुचिर रहिबौ करै॥

जासौं जोति जागति अनूप मन-मंदिर मैं

जड़ता - विषम - तम - तोम - दहिबौ करै।

जयति जसोमति के लाड़िले गुपाल, जन

रावरी कृपा सौं सो सनेह लहिबौ करै॥


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